Friday, 30 August 2024

भारत में कॉफी का इतिहास

 

   भारत में कॉफी का इतिहास



      भारत में कॉफी का इतिहास काफी पुराना और रोचक है। भारत में कॉफी की शुरुआत का श्रेय बाबा बुदान नामक एक सूफी संत को दिया जाता है। कहा जाता है कि 17 वीं शताब्दी में जब बाबा बुदान तीर्थ यात्रा के लिए यमन गए तो वहां से कॉफी की सात बीजों को  छिपा कर चुपचाप अपने साथ लाने का साहसिक कदम उठाया और उन्हें कर्नाटक के चिकमंगलूर के पहाड़ों में बो दिया। यहीं से भारत में कॉफी की खेती की शुरुआत हुई।



   धीरे-धीरे कॉफी की खेती दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों में भी फैल गई, जैसे कि केरल और तमिलनाडु। ब्रिटिश शासन के दौरान, 19वीं शताब्दी में, कॉफी की खेती को व्यावसायिक रूप से बढ़ावा मिला और इसके बड़े-बड़े बागान स्थापित किए गए। ब्रिटिश व्यापारियों ने भारतीय कॉफी को यूरोप में निर्यात करना शुरू किया, जिससे इसकी मांग और लोकप्रियता में वृद्धि हुई।

     स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सरकार ने कॉफी उद्योग को और विकसित करने के लिए 1942 में कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया की स्थापना की। इसका उद्देश्य भारतीय कॉफी की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार करना था। आज भारत दुनिया के प्रमुख कॉफी उत्पादक देशों में से एक है, और भारतीय कॉफी अपनी खास मिट्टी, जलवायु और स्वाद के लिए जानी जाती है।



    भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार की कॉफ़ी उगाई जाती  है: "अरेबिका" और "रोबस्टा"। इन दोनों की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ हैं और इन्हें विभिन्न स्वाद और सुगंध के लिए पहचाना जाता है। कर्नाटक का चिकमंगलूर क्षेत्र आज भी भारत के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख कॉफी उत्पादन क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यहाँ की कॉफी की गुणवत्ता और अद्वितीय स्वाद ने इसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में एक विशेष स्थान दिलाया है।

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